भौतिक जगत के 14 लोक

Hare Krsna,

Please accept my humble obeisances. All glories to Srila Prabhupada & Srila Gopal Krishna Maharaj.

श्रीमद् भागवतम के द्वतीय स्कन्ध के पाँचवे अध्याय में इस ब्रह्माण्ड के अन्तर्गत 14 भुवनों या लोकों का वर्णन किया गया है | श्रीमद् भागवतम (2.5.36) के अनुसार “बड़े-बड़े दार्शनिक कल्पना करते हैं कि ब्रह्माण्ड में सारे लोक भगवान् के विराट शरीर के विभिन्न उपरी तथा निचले अंगों के प्रदर्शन हैं” | तथा (2.5.38) के अनुसार “प्रथ्वी-तल तक सारे अधोलोक उनके पाँवों में स्थित हैं | भुवर्लोक इत्यादि मध्यलोक उनकी नाभि में स्थित हैं और इनसे भी उच्चतर लोक जो देवताओं तथा ऋषियों-मुनियों द्वारा निवसित हैं, वे भगवान् के वक्षस्थल में स्थित हैं”|

उपरी या ऊर्ध्व लोक: 1.भूर्लोक (प्रथ्वी),  2.भुवर्लोक (राक्षस तथा भूत पिशाच),  3.स्वर्गलोक, 4. महर्लोक (भृगु महिर्षि),  5. जनः लोक (सप्त ऋषि),  6. तपः लोक  तथा  7. सत्यलोक (ब्रह्मा धाम) |

श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर के अनुसार ध्रुवलोक सूर्य से 38 लाख योजन ऊपर स्थित है | ध्रुवलोक से एक करोड़ योजन ऊपर महर्लोक और इससे 2 करोड़ योजन ऊपर जनस लोक, फिर इससे ऊपर 8 करोड़ योजन ऊपर तपोलोक और इससे भी 12 करोड़ योजन ऊपर सत्यलोक स्थित है | इस प्रकार सूर्य से सत्यलोक की दूरी 23,38,00,000 योजन या 1,87,04,00,000 मील है | सूर्य से प्रथ्वी की दूरी 1 लाख योजन है | प्रथ्वी से 70,000 योजन नीचे अधोलोक या निम्न लोक शुरू होते हैं (SB.5.23.9 तात्पर्य) | 

सात अधोलोक: यहाँ सूर्य का प्रकाश नही जाता, अतः काल दिन या रात में विभाजित नही है जिसके फलस्वरूप काल से उत्पन्न भय नही रहता | (SB.5.24.11) |

1.अतल - मय दानव का पुत्र बल नाम का असुर जिसने 96 प्रकार की माया रच रखी है | कुछ तथाकथित योगी तथा स्वामी आज भी लोगों को ठगने के लिए इस माया का प्रयोग करते हैं  (SB.5.24.16) |

2.वितल - स्वर्ण खानों के स्वामी भगवान् शिव अपने गणों, भूतों, तथा ऐसे ही अन्य जीवों के साथ रहते है और माता भवानी के साथ विहार करते हैं (SB.5.24.17) |

3.सुतल - महाराज विरोचन के पुत्र महाराज बलि आज भी श्री भगवान् की आराधना करते हुए निवास करते हैं तथा भगवान् महाराज बलि के द्वार पर गदा धारण किये खड़े रहते हैं (SB.5.24.18) |

4.तलातल - यह मय दानव द्वारा शासित है जो समस्त मायावियों के स्वामी के रूप में विख्यात है (SB.5.24.28) |

5.महातल - यह सदैव क्रुद्ध रहने वाले अनेक फनों वाले कद्रू की सर्प-संतानों का आवास है जिनमे कुहक, तक्षक, कालिय तथा सुषेण प्रमुख हैं (SB.5.24.29) | ,

6.रसातल - यहाँ दिति तथा दनु के आसुरी पुत्रों का निवास है, ये पणि, निवात-कवच, कालेय तथा हिरण्य-पुरवासी कहलाते हैं | ये देवताओं के शत्रु हैं और सर्पों के भांति बिलों में रहते हैं (SB.5.24.30) |   

7.पाताल – यहाँ अनेक आसुरी सर्प तथा नागलोक के स्वामी रहते हैं, जिनमे वासुकी प्रमुख है | जिनमे से कुछ के पांच, सात, दस, सौ और अन्यों के हजार फण होते हैं | इन फणों में बहुमूल्य मणियाँ सुशोभित हैं जिनसे अत्यन्त तेज प्रकाश निकलता है (SB.5.24.31) |

पाताल लोक के मूल में भगवान् अनन्त अथवा संकर्षण निवास करते हैं, जो सदैव दिव्य पद पर आसीन हैं तथा इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को धारण किये रहते हैं | भगवान् अनन्त सभी बद्धजीवों के अहं तथा तमोगुण के प्रमुख देवता हैं तथा शिवजी को इस भौतिक जगत के संहार हेतु शक्ति प्रदान करते हैं (SB.5.25) |

ब्रह्मांड की माप पचास करोड़ योजन है तथा इसकी लम्बाई व चौड़ाई एकसमान है (आदि लीला 5.97.98) | प्रत्येक लोक का अपना एक विशेष वायुमंडल होता है और यदि कोई भौतिक ब्रह्माण्ड के अन्तर्गत किसी विशेष लोक की यात्रा करना चाहता है तो उस व्यक्ति को उस लोक- विशेष के अनुसार अपने शरीर को अनुकूल बनाना होता है | भौतिक ब्रह्माण्ड के इन उच्चतर लोकों में जाने के लिए मनुष्य को मन तथा बुद्धि अर्थात सूक्ष्म शरीर को त्यागना नही पड़ता, उसे केवल प्रथ्वी, जल, अग्नि इत्यादि से बने स्थूल शरीर को ही त्यागना होता है | लेकिन जब मनुष्य दिव्य लोक को जाता है, तो उसे स्थूल तथा सूक्ष्म - दोनों शरीरों को बदलना पड़ता है क्योंकि परव्योम में आध्यात्मिक रूप में ही पहुँचना होता है | हमें मन के वेग का सीमित अनुभव है, बुद्धि इससे भी सूक्ष्म है | लेकिन आत्मा तो बुद्धि की अपेक्षा लाखों गुना सूक्ष्म तथा शक्तिशाली होता है तथा आत्मा अपनी खुद की शक्ति से एक ग्रह से दूसरे ग्रह की यात्रा करता है किसी प्रकार के भौतिक यान की सहायता से नही |

एक लोक से दूसरे लोक की यात्रा का अन्त भगवान् के परम लोक पहुँचने पर ही हो सकता है जहाँ जीवन शाश्वत है और ज्ञान तथा आनन्द से परिपूर्ण है | गीता (8.16) में भगवान् कृष्ण कहते हैं: इस जगत में सर्वोच्च लोक से लेकर निम्नतम सारे लोक दुखों के घर हैं जहाँ जन्म तथा मृत्यु का चक्कर लगा रहता है, किन्तु जो मेरे धाम को प्राप्त कर लेता है वह फिर कभी जन्म नहीं लेता |

हरे कृष्णा

दण्डवत

आपका विनीत सेवक

E-mail me when people leave their comments –

You need to be a member of ISKCON Desire Tree | IDT to add comments!

Join ISKCON Desire Tree | IDT