Hari Naam Sankirtan - The singing of Lord's pious name and dancing ecstatically. The significance of Hari Naam Sankirtan is enormous. This affects one's life and gives a direction towards leading a peaceful, joyous and contended life.
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  • पद्म पुराण में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा राम नाम की महिमा का वर्णन अर्जुन के प्रति निम्न प्रकार है:~

    अथ श्रीपद्मपुराण वर्णित रामनामामृत स्त्रोत श्रीकृष्ण अर्जुन संवाद~

    अर्जुन उवाच~

    १)
    भुक्तिमुक्तिप्रदातृणां सर्वकामफलप्रदं ।
    सर्वसिद्धिकरानन्त नमस्तुभ्यं जनार्दन ॥

    अर्थ:~ सभी भोग और मुक्ति के फल दाता, सभी कर्मों का फल देने वाले, सभी कार्य को सिद्ध करने वाले जनार्दन मैं आपको नमन करता हूं।

    २)
    यं कृत्वा श्री जगन्नाथ मानवा यान्ति सद्गतिम् ।
    ममोपरि कृपां कृत्वा तत्त्वं ब्रहिमुखालयम्।।

    अर्थ:~हे श्रीजगन्नाथ! मनुष्य ऐसा क्या करें कि उसे अंत में सद्गति हो? वह तत्व क्या है? मेरे पर कृपा करके अपने ब्रह्ममुख से बताइए।

    श्रीकृष्ण उवाच~

    १)
    यदि पृच्छसि कौन्तेय सत्यं सत्यं वदाम्यहम् ।
    लोकानान्तु हितातार्थाय इह लोके परत्र च ॥

    अर्थ:~ हे कुंती पुत्र! यदि तुम मुझसे पूछते हो तो मैं सत्य सत्य बताता हूं, इस लोक और परलोक में हित करने वाला क्या है।

    २)
    रामनाम सदा पुण्यं नित्यं पठति यो नरः ।
    अपुत्रो लभते पुत्रं सर्वकामफलप्रदम् ॥

    अर्थ:~श्रीराम का नाम सदा पुण्य करने वाला नाम है, जो मनुष्य इसका नित्य पाठ करता है उसे पुत्र लाभ मिलता है और सभी कामनाएं पूर्ण होती है।

    ३)
    मङ्गलानि गृहे तस्य सर्वसौख्यानि भारत।
    अहोरात्रं च येनोक्तं राम इत्यक्षरद्वयम्।।

    अर्थ:~हे भारत! उसके घर में सभी प्रकार के सुख और मंगल विराजित हो जाते हैं, जिसने दिन-रात श्रीराम नाम के दो अक्षरों का उच्चारण कर लिया।

    ४)
    गङ्गा सरस्वती रेवा यमुना सिन्धु पुष्करे।
    केदारेतूदकं पीतं राम इत्यक्षरद्वयम् ॥

    अर्थ~जिसने श्रीरामनाम के इन दो अक्षरों का उच्चारण कर लिया उसने श्रीगंगा, सरस्वती, रेवा, यमुना, सिंधु, पुष्कर, केदारनाथ आदि सभी तीर्थों का स्नान, जलपान कर लिया।

    ५)
    अतिथेः पोषणं चैव सर्व तीर्थावगाहनम् ।
    सर्वपुण्यं समाप्नोति रामनाम प्रसादतः ।।

    अर्थ:~उसने अतिथियों का पोषण कर लिया, सभी तीर्थों में स्नान आदि कर लिया, उसने सभी पुण्य कर्म कर लिए जिसने श्रीराम नाम का उच्चारण कर लिया।

    ६)
    सूर्यपर्व कुरुक्षेत्रे कार्तिक्यां स्वामि दर्शने।
    कृपापात्रेण वै लब्धं येनोक्तमक्षरद्वयम्।।

    अर्थ:~उसने सूर्य ग्रहण के समय कुरुक्षेत्र में स्नान कर लिया और कार्तिक पूर्णिमा में कार्तिक जी का दर्शन करके कृपा प्राप्त कर ली जिसने श्रीराम नाम का उच्चारण कर लिया।

    ७)
    न गंङ्गा न गया काशी नर्मदा चैव पुष्करम् ।

    सदृशं रामनाम्नस्तु न भवन्ति कदाचन।।

    अर्थ:~ ना तो गंगा, गया, काशी, प्रयाग, पुष्कर, नर्मदादिक इन सब में कोई भी श्रीराम नाम की महिमा के समक्ष नहीं हो सकते।

    ८)
    येन दत्तं हुतं तप्तं सदा विष्णुः समर्चितः।
    जिह्वाग्रे वर्तते यस्य राम इत्यक्षरद्वयम्।।

    अर्थ:~उसने भांति-भांति के हवन, दान, तप और विष्णु भगवान की आराधना कर ली, जिसकी जिह्वा के अग्रभाग पर श्रीराम नाम के दो अक्षर विराजित हो गए।

    ९)
    माघस्नानं कृतं येन गयायां पिण्डपातनम् ।
    सर्वकृत्यं कृतं तेन येनोक्तं रामनामकम्।।

    अर्थ:~ उसने प्रयागजी में माघ का स्नान कर लिया, गयाजी में पिंडदान कर लिया उसने अपने सभी कार्यों को पूर्ण कर लिया जिसने श्रीराम नाम का उच्चारण कर लिया।

    १०)
    प्रायश्चित्तं कृतं तेन महापातकनाशनम् ।
    तपस्तप्तं च येनोक्तं राम इत्यक्षरद्वयम् ।।

    अर्थ~उसने अपने सभी महापापों का नाश करके प्रायश्चित कर लिया और तपस्या पूर्ण कर ली जिसने श्रीराम नाम के दो अक्षर का उच्चारण कर लिया।

    ११)
    चत्वारः पठिता वेदास्सर्वे यज्ञाश्च याजिताः ।
    त्रिलोकी मोचिता तेन राम इत्यक्षरद्वयम् ।।

    अर्थ~उसने चारों वेदों का सांगोपांग पाठ कर लिया सभी यज्ञ आदि कर्म कर लिए उसने तीनों लोगों को तार दिया जिसने श्रीराम नाम के दो अक्षर का पाठ कर लिया।

    १२)
    भूतले सर्व तीर्थानि आसमुद्रसरांसि च।
    सेवितानि च येनोक्तं राम इत्यक्षरद्वयम् ।।

    अर्थ~उसने भूतल पर सभी तीर्थ, समुद्र, सरोवर आदि का सेवन कर लिया जिसने श्रीराम नाम के दो अक्षरों का जाप कर लिया।

    अर्जुन उवाच~

    १)
    यदा म्लेच्छमयी पृथ्वी भविष्यति कलौयुगे ।
    किं करिष्यति लोकोऽयं पतितो रौरवालये ।।

    अर्थ~भविष्य में कलयुग आने पर पूरी पृथ्वी मलेच्छ मयी हो जाएगी इसका स्वरूप रौ-रौ नर्क की भांति हो जाएगा तब जीव कौन सा साधन करके परम पद पाएगा?

    श्रीकृष्ण उवाच~

    १)
    न सन्देहस्त्वया काय्र्यो न वक्तव्यं पुनः पुनः ।
    पापी भवति धर्मात्मा रामनाम प्रभावतः ।।

    अर्थ~यह संदेह करने योग्य नहीं है, जैसे संदेह व्यर्थ है वैसे बार-बार वक्तव्य देना भी व्यर्थ है। कैसा भी पापी हो श्रीराम नाम के प्रभाव से वह धर्मात्मा हो जाता है

    २)
    न म्लेच्छस्पर्शनात्तस्य पापं भवति देहिनः ।
    तस्मात्प्रमुच्यते जन्तुर्यस्मरेद्रामद्वचत्तरम् ।।

    अर्थ~उसे मलेच्छ के स्पर्श का भी पाप नहीं होता, मलेच्छ संबंधित पाप भी छूट जाते हैं जो श्रीराम नाम के दो अक्षरों का जाप करते हैं।

    ३)
    रामस्तत्वमधीयानः श्रद्धाभक्तिसमन्वितः।
    कुलायुतं समुद्धृत्य रामलोके महीयते ।।

    अर्थ~जो श्रीराम से संबंध रखने वाले स्त्रोत का पाठ करते हैं तथा जिनकी भक्ति, विश्वास और श्रद्धा श्रीराम में सुदृढ़ है। वह लोग अपने दस हज़ार पीढ़ियों का उद्धार करके श्रीराम के लोक में पूजित होते है।

    ४)
    रामनामामृतं स्तोत्रं सायं प्रातः पठेन्नरः ।
    गोघ्नः स्त्रीबालघाती च सर्व पापैः प्रमुच्यते ।।

    अर्थ~जो सुबह शाम इस रामनामामृत स्त्रोत का पाठ करते हैं वे गौ हत्या, स्त्री और बच्चों को हानि पहुंचाने वाले पाप से भी बच कर मुक्त हो जाते हैं।

    (इति श्रीपद्मपुराणे रामनामामृत स्त्रोते श्रीकृष्ण अर्जुन संवादे संपूर्णम्)


    श्रीमद् वाल्मीकियानंद रामायण से कुछ श्लोक उद्धत कर रहा हूं जहां भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से श्री राम नाम की महिमा कही है:~

    1) जो मंत्र भगवान श्री राम ने हनुमान जी को दिया था उसी मंत्र का वर्णन करते हुए श्री कृष्ण युधिष्ठिर से कहते हैं:~
    श्री कृष्ण उवाच युधिष्ठिर के प्रति~

    रामनाम्नः परं नास्ति मोक्ष लक्ष्मी प्रदायकम्।
    तेजोरुपं यद् अवयक्तं रामनाम अभिधियते।।

    (श्रीमद् वाल्मीकियानंद रामायण~८/७/१६)

    श्रीकृष्ण युधिष्ठिर से कहते हैं किस शास्त्र में ऐसा कोई भी मंत्र वर्णित नहीं है जो श्रीराम के नाम के बराबर हो जो ऐश्वर्य (धन) और मुक्ति दोनों देने में सक्षम हो। श्रीराम का नाम स्वयं ज्योतिर्मय नाम कहा गया है, जिसको मैं भी व्यक्त नहीं कर सकता।

    2)

    मंत्रा नानाविधाः सन्ति शतशो राघवस्य च।

    तेभ्यस्त्वेकं वदाम्यद्य तव मंत्रं युधिष्ठिर।।

    श्रीशब्धमाद्य जयशब्दमध्यंजयद्वेयेनापि पुनःप्रयुक्तम्।
    अनेनैव च मन्त्रेण जपः कार्यः सुमेधसा।

    ( श्रीमद् वाल्मीकियानंद रामायण, 9~7.44,45a,46a)

    वैसे तो श्रीराघाव के अनेक मन्त्र हैं, किन्तु युधिष्ठिर उनमें से एक उत्तम मन्त्र मैं तुमको बतलाता हूँ । पूर्वमें श्रीराम शब्द, मध्यमें जय शब्द और अन्तमें दो जय शब्दोंसे मिला हुआ (श्रीराम जय राम जय जय राम) राममन्त्र। बुद्धिमान जनों को सिर्फ इसी मंत्र का जाप करना चाहिए।

    ~आदि पुराण में तो बहुत सारा वर्णन दे रखा है लेकिन वहां से केवल एक श्लोक ही उदित कर रहा हूं।

    राम नाम सदा प्रेम्णा संस्मरामि जगद्गुरूम्।
    क्षणं न विस्मृतिं याति सत्यं सत्यं वचो मम ॥

    (श्री आदि-पुराण ~ श्री कृष्ण वाक्य अर्जुन के प्रति)

    मैं ! जगद्गुरु श्रीराम के नाम का निरंतर प्रेम पूर्वक स्मरण करता रहता हूँ, क्षणमात्र भी नहीं भूलता हूँ । अर्जुन मैं सत्य सत्य कहता हूँ ।

    ~एक श्लोक शुक संहिता से भी उदित कर रहा हूं।

    रामस्याति प्रिय नाम रामेत्येव सनातनम्।
    दिवारात्रौ गृणन्नेषो भाति वृन्दावने स्थितः ।।

    (श्री शुक संहिता)

    श्री राम नाम भगवान राम को सबसे प्रिय नाम है और यह नाम भगवान राघव का शाश्वत नाम है। श्रीराम के इस शाश्वत नाम का जप करने से भगवान कृष्ण वृंदावन में सुशोभित होते हैं।

    ऐसे अनेकों अनेक श्लोक और लिख सकता हूं लेकिन विस्तार भय के कारण आगे नहीं लिख रहा हूं।

    और अंत में एक मनुस्मृति के श्लोक से अपनी वाणी को विराम देता हूं:~

    सप्तकोट्यो महामन्त्राश्चित्तविभ्रमकारकाः ।
    एक एव परो मन्त्रो 'राम' इत्यक्षरद्वयम् ॥

    (मनुस्मृति)

    सात करोड़ महामंत्र हैं, वे सब के सब आपके चित्तको भ्रमित करनेवाले हैं। यह दो अक्षरोंवाला 'राम' नाम परम मन्त्र है। यह सब मन्त्रोंमें श्रेष्ठ मंत्र है । सब मंत्र इसके अन्तर्गत आ जाते हैं। कोई भी मन्त्र बाहर नहीं रहता। सब शक्तियाँ इसके अन्तर्गत हैं।

    (यह श्लोक सारस्त्व तंत्र में भी पाया जाता है)

    अवध के राजदुलारे श्रीरघुनंदन की जय❤️❤️
  • Shivam Pandey:
    श्रीमद् आदिपुराण में श्रीकृष्ण द्वारा श्रीराम नाम की महिमा ~

    श्रीकृष्ण उवाच अर्जुन के प्रति~

    १)
    रामनाम सदा ग्राहो रामनाम प्रियः सदा ।
    भक्तिस्तस्मै प्रदातव्या न च मुक्तिः कदाचन ।।

    अर्थ:~हे प्रिय! जो श्रीराम नाम का उच्चारण करते हैं तथा जिनको श्रीराम नाम सदा प्रिय लगता है। उनको मैं स्वयं भक्ति प्रदान करता हूं कभी मुक्ति प्रदान नहीं करता।

    २)
    गायन्ति रामनामानि वैष्णवाश्च युगे युगे ।
    त्यक्त्वा च सर्वकर्माणि धर्माणि च कपिध्वज ।।

    अर्थ:~वैष्णव जन श्रीराम नाम का गुणगान प्रतेक युग में करते हैं। हे कपिध्वज! वे सभी कर्मों और सभी धर्मों का त्याग करके श्रीराम नाम को जपते हैं।

    ३)
    रामनामैव नामैव रामनामैव केवलम् ।
    गतिस्तेषां गतिस्तेषां गतिस्तेषां सुनिश्चितम् ।।

    अर्थ:~जिनको सिर्फ राम नाम और सिर्फ राम नाम का ही आधार है, उनकी सुगति तीनों काल में सुनिश्चित बनी रहती है।

    ४)
    श्रद्धया हेलया नाम वदन्ति मनुजा भुवि ।
    तेषां नास्ति भयं पार्थ रामनामप्रसादतः॥

    अर्थ:~हे पार्थ! इस भूमि पर श्रद्धा से अथवा निंदा से कैसे भी मनुष्य यदि श्रीराम का नाम लेता है तो उसे श्रीराम की कृपा से कभी कोई भय नहीं रहता।

    ५)
    रामनाम रता यत्र गच्छन्ति प्रेम सम्प्लुताः ।
    भक्तानामनुगच्छन्ति मुक्तयः स्तुतिभिस्सह ।।

    अर्थ:~श्रीराम नाम के प्रेम रस में डूबे हुए भक्त जहां भी जाते हैं, वहां मुक्ति उनकी स्तुति करते हुए पीछे पीछे चलती हैं।

    ६)
    मानवा ये सुधासारं रामनाम जपन्ति हि ।
    ते धन्या मृत्यु संत्रास रहिता रामवल्लभाः ।।

    अर्थ:~जो मनुष्य इस सुधासागर श्रीराम नाम को निरंतर जप करते हैं, उनको मृत्यु का कभी भय नहीं रहता क्योंकि वे श्रीराम के दुलारे बन जाते हैं।

    ७)
    नामैव परमा मुक्तिर्नामैव परमा गतिः ।
    नामैव परमा शान्तिर्नामैव परमा मतिः ।।

    अर्थ:~ श्री रामनाम ही परम मुक्ति, परम गति, परम शांति और परम गति देता है।

    ८)
    नामैव परमा भक्तिर्नामैव परमा धृतिः ।
    नामैव परमा प्रीतिर्नामैव परमा स्मृतिः ।।

    अर्थ:~श्रीराम का नाम ही परम भक्ति है, नाम ही परम धैर्य है, नाम ही सर्वोच्च प्रेम है और नाम ही सर्वोच्च स्मृति है।

    ९)
    नामै व परमं पुण्यं नामै व परमं तपः ।
    नामैव परमो धर्मो नामैव परमो गुरुः ।।

    अर्थ:~श्रीराम का नाम लेना ही परम पुण्य है, परम तप है, परम धर्म है और उनका नाम ही परम गुरु है।

    १०)
    नामैव परमं ज्ञानं नामैव चाखिलं जगत् ।
    नामैव जीवनं जन्तोर्नामैव विपुलं धनम् ।।

    अर्थ:~श्रीराम का नाम ही अखिल लोक में परम ज्ञान है, उन्हीं का नाम मनुष्य का जीवन है और जापकों का श्रेष्ठ धन है।

    ११)
    नामैव जगतां सत्यं नामैव जगतां प्रियम् ।
    नामैव जगतां ध्यानं नामैव जगतां परम् ।।

    अर्थ:~श्रीराम का नाम ही जगत में सत्य है, उनका नाम ही प्रिय है, उनका नाम ही ध्यान करने योग्य है और जगत में सबसे परम उन्हीं का नाम है।

    १२)
    नामैव शरणं जंतोर्नामैव जगतां गुरुः ।
    नामैव जगतां बीजं नामैव पादनं परम् ॥

    अर्थ:~श्रीराम का नाम ही जगत की शरणागति है ,जगतगुरु है, इस सृष्टि का बीज है और परम पद प्रदान करने वाला है।

    १३)
    रामनामरता ये च ते वै श्रीरामभावकाः ।
    तेषां संदर्शनादेव भवेद्भकि रसात्मिका ।।

    अर्थ:~जो निरंतर श्रीराम नाम का जप करते हैं वे श्रीराम के प्रति प्रेम भावना से सराबोर हो जाते हैं। ऐसे रसिकों के दर्शन मात्र से हृदय विदारक भक्ति उत्पन्न हो जाती है।

    १४)
    कामादि गुण संयुक्त नाममावैक बान्धवाः ।
    प्रोतिं कुर्वन्ति ते पार्थ न तथा जित षड्गुणाः ।।

    अर्थ:~हे पार्थ! काम आदि गुण सब संयुक्त रुप से श्रीराम नाम को अपना स्वामी मानते हैं और जो नाम जप नहीं करते वे काम आदि छः गुणों पर कभी विजय नहीं प्राप्त कर पाते।

    १५)
    तं देशं पतितं मन्ये यत्र नास्ति सु वैष्णवः ।
    रामनाम परो नित्यं परानन्द विवर्द्धनः ।।

    अर्थ:~वह राष्ट्र पतित हो गया है जहां परम नित्य और सबके आनंद का वर्धन करने वाला श्रीराम नाम जापक वैष्णव नहीं है।

    १६)
    रामनाम रता जीवा न पतन्ति कदाचन ।
    इन्द्राद्दास्सम्पतन्त्यन्ते तथा चान्येऽधिकारिणः ॥

    अर्थ:~जो लोग श्रीराम के नाम के प्रति समर्पित हैं, वे कभी नीचे नहीं गिरते, इंद्र आदि उनके सेवक और अन्य अधिकारी भी नीचे गिर जाते हैं।

    १७)
    राम स्मरणमात्रेण प्राणान्मुञ्चन्ति ये नराः ।
    फलं तेषां न पश्यामि भजामि तांश्च पार्थिव ।।

    अर्थ:~जो श्रीराम का स्मरण करते हुए अपने प्राणों का त्याग करते हैं, मैं स्वयं उनके फल को नहीं जानता अपितु मैं स्वयं उनको नित्य भजता हूं।

    १८)
    नाम स्मरणमात्रेण नरो याति निरापदम् ।
    ये स्मरन्ति सदारामं तेषां ज्ञानेन किं फलम् ।।

    अर्थ:~जो मनुष्य श्रीराम नाम का स्मरण मात्र क्षण भर के लिए कर लेते हैं वे परम पद को प्राप्त हो जाते हैं और जो सदा श्रीराम नाम में ही रमण करते हैं उनके फल को तो मैं स्वयं नहीं जानता।

    १९)
    नामैव जगतां बन्धुर्नामेव जगतां प्रभुः ।
    नामैव जगतां जन्म नामैव सचराचरम् ।।

    अर्थ:~श्रीराम का नाम ही संपूर्ण जगत का मित्र एवं संपूर्ण जगत का स्वामी है। उनके नाम से ही इस जगत का प्राकट्य होता है और संपूर्ण जड़ चेतन वस्तु नाम के ही प्रभाव से है।

    २०)
    नामैव धार्यते विश्वं नामैव पाल्यते जगत् ।
    नाम्नैव नीयते नाम नामैव भुञ्चते फलम् ।।

    अर्थ:~श्रीराम का नाम ही इस संपूर्ण ब्रह्मांड को धारण करता है एवं उसका पालन करता है। उनके नाम से ही नाम जप किया जाता है और उनके नाम से ही नाम का आनंद फल मिलता है।

    २१)
    नामैव गृह्यते नाम गोप्यं परतरात्परम् ।
    नामैव कार्यते कर्म नामैव नीयते फलम् ।।

    अर्थ:~श्रीराम का नाम ही ग्रहण करने योग्य परम तत्व है, नाम ही समस्त कर्मों को निर्धारित करता है और समस्त फल देता है।


    २२)
    नाम्नैव चाङ्गशास्त्राणां तात्पर्यार्थमुत्तमम् ।
    नामैववेद सारांश सिद्धान्तं सर्वदा शिवम् ॥

    अर्थ:~श्रीराम का नाम ही सभी शास्त्रों और उनके अंगों का सर्वोत्तम अर्थ है। श्रीराम का नाम ही सभी सिद्धांतों का सार और सदैव शुभ फल देने वाला है।

    २३)
    नाम्नैव नीयते मेघा परे ब्रह्मणि निश्चला ।
    नाम्नैव चञ्चलं चित्तं मनस्तस्मिन्प्रलीयते ।।

    अर्थ:~श्रीराम नाम से ही मनुष्य की बुद्धि उन परम ब्रह्म में निश्चल हो जाती है और श्रीराम नाम के बल से ही चंचल चित्त भी उन में विलीन हो जाता है।

    २४)
    श्रीरामस्मरणेनैव नरो याति पराङ्गतिम् ।
    सत्यं सत्यं सदा सत्यं न जाने नामजं फलम् ।।

    अर्थ:~श्री राम नाम के मात्र स्मरण से मनुष्य परम पद को प्राप्त हो जाता है। मैं सत्य सत्य और सदैव सत्य कहता हूं मैं स्वयं श्रीराम नाम के फल को नहीं जानता।

    २५)
    रामनाम प्रभावोऽयं सर्वोत्तम उदाहृतः ।
    समासेन तथा पार्थ वक्ष्येऽहं तव हेतवे ।।

    अर्थ:~हे पार्थ श्रीराम नाम का प्रभाव सर्वोपरी कहा गया है, मैं संक्षेप में कहता हूं उसे सुनो।

    २६)
    न नाम सदृशं ध्यानं न नाम सदृशो जपः ।
    न नाम सदृशस्त्यागो न नाम सदृशी गतिः ।।

    अर्थ:~श्रीराम नाम तुल्य ना कोई ध्यान है, ना कोई जप है, ना कोई त्याग है और ना कोई गति है।

    २७)
    न नाम सदृशी मुक्तिर्न नाम सदृशः प्रभुः ।
    ये गृह्णन्ति सदा नाम त एवं जित षड्गुणाः ।।

    अर्थ:~श्रीराम नाम के तुल्य ना तो कोई मोक्ष है और ना कोई देवता इनके नाम के बराबर है। जिसने निरंतर श्रीराम नाम का जप कर लिया उसने कामआदि समेत छः गुणों को जीत लिया।

    २८)
    कुर्वन् वा कारयन्वाऽपि रामनामजपॅंस्तथा ।
    नोत्वा कुल सहस्राणि परंधामामि गच्छति ।।

    अर्थ:~जो स्वयं श्रीराम नाम का जप करते हैं और दूसरों को भी करवाते हैं, वे अपनी हजारों पीढ़ियों को परमधाम पहुंचा देते हैं।

    २९)
    नाम्नैव नीयते पुण्यं नाम्नैव नीयते तपः ।
    नाम्नेव नीयते धर्मो जगदेतच्चराचरम् ।।

    अर्थ:~श्रीराम नाम से ही पुण्य होता है, उनके नाम से ही तप होता है और जगत में धर्म का पालन होता है।

    ३०)
    रामनाम प्रभावेण सर्व सिद्धेश्वरो भवेत् ।
    विश्वासेनैव श्रीरामनाम जाप्यं सदा बुधैः ।।

    अर्थ:~श्रीराम नाम के ही प्रभाव से व्यक्ति सभी सिद्धियों को प्राप्त कर लेता है इसीलिए विश्वास पूर्वक बुद्धिमान जनों को श्रीराम नाम का जप करना चाहिए।

    ३१)
    शान्तो दान्तः क्षमाशीलो रामनाम परायणः ।
    असंख्य कुलजानां वैतारणे सर्वदा क्षमः ॥

    अर्थ:~जो शांतिपूर्वक, आत्मनियंत्रित और क्षमाशील होकर श्रीराम नाम को धारण करता है, वह अपने असंख्य कुल को वैतरणी के पार करने में सक्षम हो जाता है।

    ३२)
    ये नाम युक्ता विचरन्ति भृमौत्यक्त्वाऽर्थकामान्विषयश्च भोगान् ।
    तेषां च भक्तिः परमा च निष्ठा सदैव शुद्धा सुभगा भवन्ति ।।

    अर्थ:~जो श्रीराम नाम से युक्त होते हैं वह अपने धन की कामनाओं और वस्तुओं के सुख की चिंता किए बिना पृथ्वी पर विचरण करते हैं। वे अपनी भक्ति और अपने प्रचंड निष्ठा के चलते हमेशा पवित्र और भाग्यशाली रहते हैं।

    ३३)
    स्मरद्दो रामनामानि त्यक्त्वा कर्माणिचाखिलम् ।
    स पूतः सर्वपापेभ्यः पद्मपत्रमिवाम्भसा ।।

    अर्थ:~जो सभी कर्मों का त्याग करके श्रीराम नाम का स्मरण करते हैं वह सभी पापों से मुक्त हुए रहते हैं, जैसे कमल को जल स्पर्श नहीं करता।

    ३४)
    त्यक्त्वा श्रीरामनामानि कर्म कुर्वन्ति येऽधमाः ।
    तेषां कर्माणिबन्धाय न सुखाय कदाचन ।।

    अर्थ:~जो मूर्ख श्री रामनाम को त्याग कर के अन्य कर्म में रुचि लेते हैं उनके कर्म सुख का नहीं अपितु बंधन का कारण बनते हैं।

    ३५)
    यस्य चेतसि श्रीराममहामाङ्गलिकं परम् ।
    स जित्वा सकलॉंल्लोकान् परंधाम परिव्रजेत् ॥

    अर्थ:~जिनके चित्त में सदैव श्रीराम नाम का परम मंगल धाम विराजित है वे समस्त लोकों को लांघ करके परमधाम में विराजित हो जाते हैं।

    ७०)
    रामनाम जपाज्जीवा अनायासेन मंसृतिम् ।
    तरन्त्येव तरन्त्येव तरन्त्येव सुनिश्चितम् ॥

    अर्थ:~श्रीरामनाम जप से समस्त जीव संसार सागर को तर जायेंगे, सन्देह बिना पार उतरेंगे। मैं बारम्बार कहता हुं निश्चय करके मानना।


    अर्जुन उवाच~

    ७१)
    भवत्येव भवत्येव भवत्येव महामते ।
    सर्वपाप परिव्याप्तास्तरन्ति नामबान्धवाः ।।

    अर्थ:~हे महात्मा!ये बात सर्वथा, सर्वथा और सर्वथा है, चाहे कैसा भी पापी हो श्रीराम नाम के बल से वो समस्त पापों से मुक्त हो जाता है।

    ७२)
    नमोस्तु नामरूपाय नमोस्तु नामजल्पिने ।
    नमोस्तु नाम सान्ध्याय वेदवेद्याय शाश्वते ।।

    अर्थ:~श्रीरामनाम के परात्पर स्वरूप को मेरा नमस्कार है, श्रीनाम जापक को मेरा दंडवत् है, परम फलरूप श्रीरामनाम के लिए मेरा मति है की सकल वेद के सार श्रीरामनाम को मेरा प्रणाम हैं।


    ७३)
    नमोस्तु नामनित्याय नमो नाम प्रभाविने ।
    नमोस्तु नामशुद्धाय नमो नाममयाय च ।।

    अर्थ:~परम नित्य, महाप्रभाव संयुक्त, परम शुद्ध सर्व शक्तिमान श्रीरामनाम को मेरा पुनः पुनः प्रणाम है।

    ७४)
    श्रीरामनाम माहात्म्यं यः पठेच्छुद्धयान्वितः ।
    स याति परमं स्थानं रामनाम प्रमादतः ।।

    अर्थ:~श्रीरामनाम का माहात्म्य जो श्रद्धा समेत सुनते, पढ़ते या गाते हैं, वो सज्जन श्रीरामनाम प्रताप से परमधाम प्राप्त करते हैं।

    ७५)
    रामनामार्थमुत्कृष्टं पवित्रं पावनं परम् ।
    ये ध्यायन्ति सदास्नेहात्ते कृतार्थाः जगत्त्रये ।।

    अर्थ:~श्रीरामनाम का उज्जवल गुन अर्थ परम श्रेष्ठ है, परम पवित्र है, जो सनेह समेत मनन करते हैं वे पुनीत होते हैं। वे ही तीनों लोकों में कृतार्थ रूप हैं।
  • अथ श्रीपद्मपुराण वर्णित रामनामामृत स्त्रोत श्रीकृष्ण अर्जुन संवाद~


    अर्जुन उवाच~

    १)
    भुक्तिमुक्तिप्रदातृणां सर्वकामफलप्रदं ।
    सर्वसिद्धिकरानन्त नमस्तुभ्यं जनार्दन ॥

    अर्थ:~ सभी भोग और मुक्ति के फल दाता, सभी कर्मों का फल देने वाले, सभी कार्य को सिद्ध करने वाले जनार्दन मैं आपको नमन करता हूं।


    २)
    यं कृत्वा श्री जगन्नाथ मानवा यान्ति सद्गतिम् ।
    ममोपरि कृपां कृत्वा तत्त्वं ब्रहिमुखालयम्।।

    अर्थ:~हे श्रीजगन्नाथ! मनुष्य ऐसा क्या करें कि उसे अंत में सद्गति हो? वह तत्व क्या है? मेरे पर कृपा करके अपने ब्रह्ममुख से बताइए।


    श्रीकृष्ण उवाच~

    १)
    यदि पृच्छसि कौन्तेय सत्यं सत्यं वदाम्यहम् ।
    लोकानान्तु हितातार्थाय इह लोके परत्र च ॥

    अर्थ:~ हे कुंती पुत्र! यदि तुम मुझसे पूछते हो तो मैं सत्य सत्य बताता हूं, इस लोक और परलोक में हित करने वाला क्या है।

    २)
    रामनाम सदा पुण्यं नित्यं पठति यो नरः ।
    अपुत्रो लभते पुत्रं सर्वकामफलप्रदम् ॥

    अर्थ:~श्रीराम का नाम सदा पुण्य करने वाला नाम है, जो मनुष्य इसका नित्य पाठ करता है उसे पुत्र लाभ मिलता है और सभी कामनाएं पूर्ण होती है।

    ३)
    मङ्गलानि गृहे तस्य सर्वसौख्यानि भारत।
    अहोरात्रं च येनोक्तं राम इत्यक्षरद्वयम्।।

    अर्थ:~हे भारत! उसके घर में सभी प्रकार के सुख और मंगल विराजित हो जाते हैं, जिसने दिन-रात श्रीराम नाम के दो अक्षरों का उच्चारण कर लिया।

    ४)
    गङ्गा सरस्वती रेवा यमुना सिन्धु पुष्करे।
    केदारेतूदकं पीतं राम इत्यक्षरद्वयम् ॥

    अर्थ~जिसने श्रीरामनाम के इन दो अक्षरों का उच्चारण कर लिया उसने श्रीगंगा, सरस्वती, रेवा, यमुना, सिंधु, पुष्कर, केदारनाथ आदि सभी तीर्थों का स्नान, जलपान कर लिया।

    ५)
    अतिथेः पोषणं चैव सर्व तीर्थावगाहनम् ।
    सर्वपुण्यं समाप्नोति रामनाम प्रसादतः ।।

    अर्थ:~उसने अतिथियों का पोषण कर लिया, सभी तीर्थों में स्नान आदि कर लिया, उसने सभी पुण्य कर्म कर लिए जिसने श्रीराम नाम का उच्चारण कर लिया।

    ६)
    सूर्यपर्व कुरुक्षेत्रे कार्तिक्यां स्वामि दर्शने।
    कृपापात्रेण वै लब्धं येनोक्तमक्षरद्वयम्।।

    अर्थ:~उसने सूर्य ग्रहण के समय कुरुक्षेत्र में स्नान कर लिया और कार्तिक पूर्णिमा में कार्तिक जी का दर्शन करके कृपा प्राप्त कर ली जिसने श्रीराम नाम का उच्चारण कर लिया।

    ७)
    न गंङ्गा न गया काशी नर्मदा चैव पुष्करम् ।
    सदृशं रामनाम्नस्तु न भवन्ति कदाचन।।

    अर्थ:~ ना तो गंगा, गया, काशी, प्रयाग, पुष्कर, नर्मदादिक इन सब में कोई भी श्रीराम नाम की महिमा के समक्ष नहीं हो सकते।

    ८)
    येन दत्तं हुतं तप्तं सदा विष्णुः समर्चितः।
    जिह्वाग्रे वर्तते यस्य राम इत्यक्षरद्वयम्।।

    अर्थ:~उसने भांति-भांति के हवन, दान, तप और विष्णु भगवान की आराधना कर ली, जिसकी जिह्वा के अग्रभाग पर श्रीराम नाम के दो अक्षर विराजित हो गए।

    ९)
    माघस्नानं कृतं येन गयायां पिण्डपातनम् ।
    सर्वकृत्यं कृतं तेन येनोक्तं रामनामकम्।।

    अर्थ:~ उसने प्रयागजी में माघ का स्नान कर लिया, गयाजी में पिंडदान कर लिया उसने अपने सभी कार्यों को पूर्ण कर लिया जिसने श्रीराम नाम का उच्चारण कर लिया।

    १०)
    प्रायश्चित्तं कृतं तेन महापातकनाशनम् ।
    तपस्तप्तं च येनोक्तं राम इत्यक्षरद्वयम् ।।

    अर्थ~उसने अपने सभी महापापों का नाश करके प्रायश्चित कर लिया और तपस्या पूर्ण कर ली जिसने श्रीराम नाम के दो अक्षर का उच्चारण कर लिया।

    ११)
    चत्वारः पठिता वेदास्सर्वे यज्ञाश्च याजिताः ।
    त्रिलोकी मोचिता तेन राम इत्यक्षरद्वयम् ।।

    अर्थ~उसने चारों वेदों का सांगोपांग पाठ कर लिया सभी यज्ञ आदि कर्म कर लिए उसने तीनों लोगों को तार दिया जिसने श्रीराम नाम के दो अक्षर का पाठ कर लिया।

    १२)
    भूतले सर्व तीर्थानि आसमुद्रसरांसि च।
    सेवितानि च येनोक्तं राम इत्यक्षरद्वयम् ।।

    अर्थ~उसने भूतल पर सभी तीर्थ, समुद्र, सरोवर आदि का सेवन कर लिया जिसने श्रीराम नाम के दो अक्षरों का जाप कर लिया।


    अर्जुन उवाच~

    १)
    यदा म्लेच्छमयी पृथ्वी भविष्यति कलौयुगे ।
    किं करिष्यति लोकोऽयं पतितो रौरवालये ।।

    अर्थ~भविष्य में कलयुग आने पर पूरी पृथ्वी मलेच्छ मयी हो जाएगी इसका स्वरूप रौ-रौ नर्क की भांति हो जाएगा तब जीव कौन सा साधन करके परम पद पाएगा?


    श्रीकृष्ण उवाच~

    १)
    न सन्देहस्त्वया काय्र्यो न वक्तव्यं पुनः पुनः ।
    पापी भवति धर्मात्मा रामनाम प्रभावतः ।।

    अर्थ~यह संदेह करने योग्य नहीं है, जैसे संदेह व्यर्थ है वैसे बार-बार वक्तव्य देना भी व्यर्थ है। कैसा भी पापी हो श्रीराम नाम के प्रभाव से वह धर्मात्मा हो जाता है

    २)
    न म्लेच्छस्पर्शनात्तस्य पापं भवति देहिनः ।
    तस्मात्प्रमुच्यते जन्तुर्यस्मरेद्रामद्वचत्तरम् ।।

    अर्थ~उसे मलेच्छ के स्पर्श का भी पाप नहीं होता, मलेच्छ संबंधित पाप भी छूट जाते हैं जो श्रीराम नाम के दो अक्षरों का जाप करते हैं।

    ३)
    रामस्तत्वमधीयानः श्रद्धाभक्तिसमन्वितः।
    कुलायुतं समुद्धृत्य रामलोके महीयते ।।

    अर्थ~जो श्रीराम से संबंध रखने वाले स्त्रोत का पाठ करते हैं तथा जिनकी भक्ति, विश्वास और श्रद्धा श्रीराम में सुदृढ़ है। वह लोग अपने दस हज़ार पीढ़ियों का उद्धार करके श्रीराम के लोक में पूजित होते है।

    ४)
    रामनामामृतं स्तोत्रं सायं प्रातः पठेन्नरः ।
    गोघ्नः स्त्रीबालघाती च सर्व पापैः प्रमुच्यते ।।

    अर्थ~जो सुबह शाम इस रामनामामृत स्त्रोत का पाठ करते हैं वे गौ हत्या, स्त्री और बच्चों को हानि पहुंचाने वाले पाप से भी बच कर मुक्त हो जाते हैं।

    (इति श्रीपद्मपुराणे रामनामामृत स्त्रोते श्रीकृष्ण अर्जुन संवादे संपूर्णम्)
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